आती-जाती सांसों में जीवन की नश्वरता


कभी तनहा में शिद्दत से सोच कर देखें तो एक कड़वा सच जो अपने संपूर्ण स्वरूप में हमारे सामने आ खड़ा होता है, वो ये हैं कि इस धरती पर सभ्यता के आगाज से ही समय का पहिया अबाध गति से चलता जा रहा है। लम्हें दिन में, महीने वर्ष में और युग कालखंडों में रपत्ता-रफ्ता तबदील होते जा रहे हैं। अपनी-अपनी रफ्तार से दिन-रात गतिमान रहता है। आशय यह है कि समय कभी ठहरता नहीं है और यही कारण हैं कि यह किसी मुट्ठी में बंद रेत की तरह अनायास ही इनसान की हथेली से फिसलता-सा चला जाता है। तिस पर जैसे-जैसे वक्त गुजरता जाता है, मानव और इस कायनात की सभी चीजें अपने अस्तित्व के अंत के करीब पहुंचती जाती हैं। मां के गर्भ में पंदन ले रहा शिशु जब इस धरती पर जन्म लेता है तो उसके जीवन का आगाज ही रुदन से होता शशु जब पहली बार इस धरती को अपनी आंखों से देखता हैं तो वह रोता क्यों है? जाहिर है, इसका भी कारण परिवर्तन ही है। अपनी मां के गर्भ में पलरहे सकून भरे परिवेश से इतर जब वह इस संसार को देखता है तो उसे सब कुछ विचित्र-सा और बदला-बदला दिखता है। मां के गर्भ से एक शिशु के इस धरती पर जन्म लेने की कुदरती घटना में भी परिवर्तन के शाश्वत होने का सर्वविदित सत्य प्रमाणित होता है ।एक अति प्राचीन कथा हैं। एक व्यक्ति एक दिन अपने गुरु के साथ किसी नदी पर बने एक पुल देर तक रोक नहीं पाया और उत्कृट जिज्ञासा के वशीभूत निमाण हुआ हगा, तब से यह पुल प्रति पर खड़ा था। शिष्य ने कह्म-गुरुवर, देखिये पुल के नीचे अपने गुरु से पूछ ही लिया, गुरुवर, मैं आपकी बातें सुनकर लम्हा पुराना और कमजोर होता जा रहा है और एक वक्त का जल कितनी तेज धारा से बह रहा है। गुरु बोले, शिष्य, काफ़ी दिग्भ्रमित हो गया हूं। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह भी आयेगा जब नदी की बहती हुई जलधारा भी सुख केवल पुल के नीचे का जल नहीं बह रहा है, प्रत्युत पुल पुल के बहने, हम सभी के बहने या सांसारिक चीजों के जाएगी। और मनुष्य का क्या? वह आज हैं, कल नहीं। भी बह रहा है, पुल के साथ-साथ हम सभी बह रहे हैं, बहने के निहितार्थ क्या हैं? कृपा करके मेरा मार्गदर्शन अभी है, पल भर बाद नहींआखिर सब कुछ बहता जा नदी बह रही हैं और इस दुनिया की सारी चीजें बह रही कीजिये। गुरु ने अपने शिष्य के इस प्रकार के दार्शनिक रहा है या नहीं? सब कुछ नष्ट होता जा रहा है या नहीं? हैं। गुरु की पहेली सरीखी इन बातों को सुनकर शिष्य बड़ी और गूढ़ अर्थी को समझ न पाने की असमर्थता को और गुरु की बातें सुनकर गोया शिष्य के विवेक-चक्षु खुल दुविधा में पड़ गयाउसने खुद को समझाने की काफी अधिक जटिल न बनाते हुए उसके ज्ञानांधकार को इस गये हों । तत्क्षण ही उसके मन का अंधकार हट चुका था, कोशिश की, किन्तु वह अपने मन के कौतुहल को बहुत प्रकार रोशन किया पुत्र, देखो, जिस समय इस पुल का अज्ञानता का तम दिव्य ज्ञान की रौशनी से आलोकित ही चुका था। उसे एक विचित्र और समयातीत दिव्यज्ञान की अनुभूति हुई। इतना ही नहीं, गुरु की बातों को सुनकर उसे इस संसार की सभी खूबसूरत और रंगीन चीजों से वितृष्णा-सी उत्पन्न हो गयीलौकिक संसार उसे मायावी, क्षण भंगुर और मिथ्या प्रतीत होने लगावह खुद को हारा हुआ और डरा हुआ महसूस करने लगा। जीवन और संसार के बारे में गुरु की कड़वी हकीकतों और अप्रत्याशित रहस्योद्घाटन से शिष्य के जीवन में जो बवंडर या था, उसकी गिरफ्त में उसे एक विचित्र घुटन का अहसास होने लगा और वह परेशान हो उठाइस सत्य से इनकार करना आसान नहीं होगा कि जीवन और संसार की नश्वरता के प्रति मानव की यह अनदेखी, नासमझी और भ्रान्ति इस धरती पर उसके समस्त शारीरिक दुखों और मानसिक वेदनाओं का मूल कारण है। इस सत्य से भी कदाचित ही कोई इनकार कर पाए कि जीवन के प्रत्येक पल के साथ हम मृत्यु के करीब पहुंचते जाते हैं और तिस पर हमें यह भ्रम होता रहता है कि हम समय के साथ आगे बढ़ रहे हैं और धीरे-धीरे बड़े हो रहे हैंसच पूछिए तो हम पल-पल जो नहीं रहे होते हैं, प्रत्युत क्षरण की और उन्मुख होते हैं। वक्त की गति में इनसान की जीवनलीला के सारे दुखद और सुखद् एपिसोड्स छुपे को जोड़े रखने में कामयाब होती हैं, जिसे हम जीवन कहते हैं। इसका आशय यह भी है कि जीवन के लिए एक सांस ही यथेष्ट है और मृत्यु इसी एक सांस की अनुपस्थिति हैसांसों की गैरहाजिरी जीवन की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है। सांस का चलना ही जीवन है और सांस से हार का ही दूसरा नाम मृत्यु है। सांस नहीं तो जीवन नहीं और जीवन नहीं तो मृत्यु कैसी? अर्थात जीवन ही मृत्यु का कारण है।